भारतीयता के सच्चे प्रतिनिधि थे: डॉ. कलाम - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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15 अक्टूबर 2025

भारतीयता के सच्चे प्रतिनिधि थे: डॉ. कलाम

मधेपुरा: भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ. ए. पी. जे. अबुल कलाम की जयंती पर बुधवार को राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के तत्वावधान में शिक्षाशास्त्र विभाग में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य वक्ता उर्दू सलाहकार समिति के सदस्य डॉ. फिरोज मंसूरी ने बताया कि डा. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था. वे सीमित संसाधनों वाले संयुक्त परिवार में पले-बढ़े. लेकिन आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, कलाम ने समाचार पत्र बांटकर अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी की. घोर अभावों के बावजूद वे सर्वोच्च पद तक पहुंचे. उन्होंने बताया कि डॉ. कलाम ने सन् 1960 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्रोलॉजी (एमआईटी) में वैमानिकी इंजीनियरिंग में स्रातक डिग्री प्राप्त की. उन्होंने सन् 1958 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने बताया कि डॉ. कलाम सन् 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में शामिल हुए और सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएलबी- 3) के परियोजना निदेशक बने. उनकी अगुवाई में सन् 1980 में रोहिणी उपग्रह का सफल प्रक्षेपण हुआ. सन् 1982 में डीआरडीओ में लौटकर उन्होंने एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) का नेतृत्व किया और पृथ्वी, आकार, त्रिशूल और नाग जैसी मिसाइलें विकसित की गईं. उन्होंने 1998 के पोखरण-1 परमाणु परीक्षण का नेतृत्व किया और भारत को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया. इसके अतिरिक्त, रूस के साथ उनकी साझेदारी ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का विकास किया, जो उनकी वैश्विक दृष्टि को दर्शाता है. 

विशिष्ट अतिथि रमेश झा महिला महाविद्यालय, सहरसा में दर्शनशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डॉ. प्रत्यक्षा राज ने कहा कि डा. कलाम नैतिकता के जीवंत प्रतीक हैं. उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में नैतिकता का समावेश करने की जरूरत बताई. उन्होंने मूल्य-आधारित शिक्षा, प्रौद्योगिकी एकीकरण और नैतिक नेतृत्व पर जोर दिया. वे शिक्षा में नैतिकता का समावेश करना चाहते थे और सबों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के पक्षधर थे. उन्होंने बताया कि डॉ. कलाम को कई पुरस्कार मिले हैं. इनमें पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) एवं भारतरत्न (1997) पुरस्कार शामिल हैं. इसके अलावा उन्हें विश्व भर के चालीस से अधिक विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की मानद उपाधि भी मिली है. मुख्य अतिथि परिसंपदा प्रभारी शंभू नारायण यादव ने बताया कि डा. कलाम 25 जुलाई, 2002 को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और अन्य दलों के समर्थन से भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए। उन्हें जनता का राष्ट्रपति के रूप में जाना गया. उनके कार्यकाल ने भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत किया और तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया. उन्होंने बताया कि डा. कलाम ने राष्ट्रपति के रूप में भी एक आदर्श प्रस्तुत किया. उन्होंने राष्ट्रपति भवन को भी आम लोगों के लिए खोल दिया था. वे हमेशा बच्चों को राष्ट्रपति भवन में बुलाया करते थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कार्यक्रम समन्वयक (एनएसएस) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि डा. कलाम शिक्षकों को सर्वाधिक महत्व देते थे. उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भी शिक्षक के रूप में कार्य करने को प्राथमिकता देते थे. वे राष्ट्रीय का कार्यकाल पूरा होने के बाद शिक्षाविद के रूप में समाज में लौटे. उन्होंने विभिन्न संस्थानों में अतिथि प्रोफेसर और कुलपति के रूप में सेवा की. 
उन्होंने बताया कि डा. कलाम भारतीयता के सच्चे प्रतिनिधि थे. उन्होंने नैतिकता के नए प्रतिमान स्थापित किए. वे सादगी का जीवन जीते थे. जीवन के अंतिम समय में भी उनके पास संपत्ति के रूप में मात्र एक घड़ी, एक जोड़ी जूते, तीन सूट, चार पैंट, छः शर्ट और दो हजार पांच सौ किताबें थीं. 
उन्होंने कहा कि डॉ. कलाम का जीवन एवं दर्शन हम सबों के लिए प्रेरणास्रोत है. उन्होंने वर्ष 2020 तक भारत को विकसित बनाने का सपना देखा था. यह वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनाने का आधार है. युवाओं को इससे प्रेरणा लेते हुए भारत को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए. इस अवसर पर असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राम सिंह, खुशबू कुमारी, पिंकी कुमारी, प्रियांशु कुमारी, अंजली कुमारी, सुषमा कुमारी, मिसा कुमारी, काजल कुमारी, प्रियंका कुमारी, सोनी कुमारी, आराध्या आनंद, निधि कुमारी, अभिनंदन कुमार, विक्रम कुमार, अलका कुमारी, हर्ष कुमारी, नीरज कुमार, नवीन कुमार, अतुल अनुराग, एहतेशाम आलम, अंकित कुमार, मनमोहन कुमार, सौरभ कुमार, ब्रजेश कुमार, दिलखुश कुमार, रुपेश कुमार आदि उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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