आइए जानते हैं कौन थे ब्रज बिहारी प्रसाद - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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25 अक्टूबर 2025

आइए जानते हैं कौन थे ब्रज बिहारी प्रसाद

 

डेस्क: ब्रज बिहारी प्रसाद वह व्यक्ति थे जिन्होंने बिहार के सामंतों की नींद हराम कर दी थी. उन्होंने पूरी उम्र सामंती व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया, परंतु आज भी प्रचलित है कि गरीबो को स्वर और राजनीतिक दिशा लालू प्रसाद ने दी. कुछ बातें है जो सर्वविदित है, जिसके प्रमाण तो नहीं है, लेकिन सच्चाई से दूर भी नहीं लगती. लालू जी ने बृजप्रसाद जी का सिर्फ राजनीति में उपयोग किया, उनके कंधे पर रखकर बंदूक चलवाई और फिर उसी कंधे को मिटाने का काम भी किया,क्योंकि बृज बिहारी जी सीएम के प्रबल दावेदार हो चुके थे तो पहले घोटाले में उनको जेल किया और फिर षडयंत्र पूर्वक उनकी हत्या की गई. बृज बिहारी प्रसाद (कलवार), अमर शहीद स्वर्गीय लक्ष्मेश्वर साहू (कानू), मातृदेश खबर के रिपोर्टर (कानू), राजकुमार साह के भाई (तेली), रमा हार्डवेयर के स्वामी (मारवाड़ी) और ऐसे सैकड़ों अन्य लोग, जो किसी न किसी व्यवसाय से जुड़े थे, उन्होंने समाज को सामंतवाद से मुक्त करने के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी. बृज बिहारी प्रसाद पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने व्यवसायी जातियों का राजनीतिकरण किया और वैश्य राजनीति की नींव रखी. 
बिहार में ओबीसी वैश्य जातियों की कुल आबादी मात्र 2.31 प्रतिशत है, जबकि अकेले अतिपिछड़ा वैश्य समुदाय में 'तेली’ की जनसंख्या 2.81 प्रतिशत है. यदि कानू की 2.21, तमोली की 0.47 और हलवाई की 0.60 जातियों को सम्मिलित कर लिया जाए तो यह संख्या 6 प्रतिशत से अधिक हो जाती है. यदि ओबीसी और अतिपिछड़ा, दोनों वर्गों की वैश्य आबादी को मिलाकर देखा जाए तो अकेले वैश्य समुदाय की कुल जनसंख्या लगभग 8.5 प्रतिशत  के करीब है. सोनार, अवध बनिया, सामरी वैश्य और पटवा जातियों को भी जोड़ देने पर यह कुल आबादी लगभग 10 प्रतिशत के करीब पहुँचती है. यह एक बड़ी सामाजिक-आर्थिक शक्ति है, जो यदि संगठित हो जाए तो राजनीति की किसी भी धारा को परिवर्तित करने की क्षमता रखती है. इन वर्गों के पास आर्थिक संपन्नता तो है, परंतु राजनीति में इनका उपयोग मात्र ‘वसूली’ और ‘ग्राहक’ की तरह किया जाता है. इन वर्गों के अनेक लोग टिकट खरीदकर राजनीति में प्रवेश तो करते हैं, परंतु उन्होंने कभी सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन या सामूहिक एकता पर गंभीरता से कार्य ही नहीं किया.
लेकिन उन्हें अब अपने समाज के लिए सोचना होगा और नई पहल करना होगा. यदि किया होता तो देव प्रसाद चौरसिया, परबत्ता, ऋतु जायसवाल, मदन शाह को टिकट के लिए नागिन डांस नहीं करना पड़ता. यही फर्क होता है बिना समाजिक परिवर्तन के पैसे के दम पर राजनीति करने पर कभी भी कोई भी काट देगा. ये समुदाय एक सशक्त प्रेशर ग्रुप यानि अपने जाति के जो भी उम्मीदवार हो चाहे वह किसी भी दल से क्यों न हो उन्हें ही वोट देना,के रूप में अन्य सामंती और लठैत जातियों की तरह स्वयं को तैयार ही नहीं कर सका. इसके पीछे बड़ा कारण इस समुदाय का सभी वर्गों पर आश्रित होना यानि कि व्यापार है, जिसके कारण यह कभी किसी से बैर लेने की दिशा में सोच भी नहीं सकता,इनके जींस में लड़ाकू क्षमता न होने का कारण मूलतः यही सोच है. जिसके कारण यह देश प्रथम और सुरक्षा को सर्वोपरि मानता रहा है और उसी के अनुसार राष्ट्रवादी दल के साथ हमेशा रहा.
(स्पेशल रिपोर्ट) 
पब्लिसिटी के लिए नहीं पब्लिक के लिए काम करना ही पत्रकारिता है....

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