समय के साथ बदल रही शिक्षकों की परिभाषा और जिम्मेदारी - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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4 सितंबर 2025

समय के साथ बदल रही शिक्षकों की परिभाषा और जिम्मेदारी

मधेपुरा: शिक्षा और शिक्षक दो ऐसी कड़ी हैं जो किसी समाज की दशा और दिशा तय करते हैं. शिक्षा तभी कारगर हो सकती है जब उसके सारथी शिक्षक आले दर्जे के होंगे. प्रतिबद्धता एक आंतरिक शक्ति है जो शिक्षकों को बेहतर कार्य प्रदर्शन दर्शाने के लिए प्रेरित करती है. शिक्षण के प्रति प्रतिबद्धता शिक्षकों को अधिगम के विकास के लिए शिक्षण के नए तरीकों का पता लगाने की जिम्मेदारी देती है. शिक्षक को सही मायने में राष्ट्र निर्माता कहा जा सकता है. समय समय पर शिक्षकों ने अपनी दृढ़ता, प्रेम, त्याग, समर्पण के माध्यम से अलग अलग क्षेत्रों में ऐसी प्रतिभाओं को तराशा जो महान पुरुषों के रूप में हमारे समाज और राष्ट्र के भाग्य विधाता बनें. यह हमारे प्रिय शिक्षक ही हैं जो हमारे चरित्र, हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं और हमें सही दिशा दिखाते हैं जो हमें हमारे जीवन के अंतिम गंतव्य तक महत्व का भान कराती हैै. यूं कहें जीवन में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला साधक होते हैं शिक्षक।ऐसे ही शिक्षकों के सम्मान में अलग अलग देशों में शिक्षक दिवस मना उनके योगदानों और भूमिकाओं को सम्मान दिया जाता हैै. भारत में पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा रही है. 
भारत में सबसे पहली दफा शिक्षक दिवस का आयोजन पांच सितंबर 1962 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के 77 वीं जयंती के अवसर पर मनाया गया था. यकीनन यह दिन राष्ट्र निर्माण में मार्गदर्शन और शिक्षा व्यवस्था में योगदान का सम्मान की परंपरा का आगाज था. इसके पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. भारत के राष्ट्रपति बनने के बाद डॉ राधाकृष्णन के छात्रों और शुभचिंतकों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा जताई जिसपर उन्होंने सलाह दिया कि वो मूलतः खुद को एक शिक्षक ही मानते हैं इसलिए उनके जन्मदिन को मनाना हो तो शिक्षक दिवस के रूप में ही मनाया जाए फिर वहीं से शुरू हुआ शिक्षक दिवस मनाने की परंपरा का आगाज जो समय की रफ्तार में सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर शिक्षकों के सम्मान का लगातार सबसे बड़ा अवसर प्रदान कर रहा हैै. भारत दशकों से जारी शिक्षक दिवस की परम्परा के विभिन्न आयाम हैं. 
साल 2025 में शिक्षक दिवस का थीम अगली पीढ़ी के शिक्षार्थियों को प्रेरित करना है. यह थीम समाज के मजबूत भविष्य की आधारशिला के प्रति चिंता और गंभीरता को दिखाता है. कभी के विश्वगुरु रहे भारत के वर्तमान दौर की शिक्षा और शिक्षकों के महत्व को दर्शा रहा है यह थीम. जब 21 वीं सदी में सम्पूर्ण दुनिया विकास पथ पर निरंतर नए नए उपलब्धियों से अपनी उपलब्धि दर्ज करा रही है उस दौर में विश्व में सर्वाधिक आबादी का दंभ भरने वाला भारत अपनी शिक्षा व्यवस्था की उलझी लचर व्यवस्था से खुद को मानों पिछले पायदान पर पा रहा. सभ्यता, संस्कृति के गौरवशाली विरासत, विशाल आबादी के बाद भी साहित्य, कला, विज्ञान, खेल में हमारी विश्व पटल पर नगण्य सी उपस्थिति मानों चिढ़ा सी रही है यह बात अलग है कि सिस्टम गलत डेटा द्वारा अपनी पीठ थपथपाने से भी बाज नहीं आती. यहां यह कहना गलत न होगा कि इसका मूल कारण हमारी लचर शिक्षा व्यवस्था, सिस्टम द्वारा शिक्षकों को सम्मान, सुविधा वेतन नहीं मिलना और शिक्षकों के समर्पण, त्याग और कर्तव्य निष्ठा में आई गिरावट मूल कारण है. शिक्षकों की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अधिकांश सरकारी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों के बच्चे उसमें पढ़ने के बजाय निजी संस्थानों में पढ़ते हैं. 
बेपटरी हुई शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की कवायद जारी है. शिक्षकों के वेतनमान में लगातार सुधार, शिक्षकों को बढ़ती सुविधाएं, शिक्षक दिवस पर राज्य और केंद्र सरकार से मिलते सम्मान इसके घोटक हैं. आज शिक्षकों को भी खुद के महत्व को समझने की जरूरत है कि उसके पास, गुरु वशिष्ठ, परशुराम, द्रोणाचार्य, चाणक्य, गोखले, राधाकृष्णन, कलाम जैसे नामों की विरासत है जिसको बचाना और आगे ले जाना उनका परम कर्तव्य है. शिक्षक दिवस छात्रों और शिक्षकों के लिए किसी पावन पर्व से कम नहीं है, इस दिन छात्र मानों अपने शिक्षकों पर सर्वस्व न्यौछावर कर देना चाहता है और शिक्षकों को भी लगता है कि शिक्षक होना सर्वाधिक गौरव का कार्य है. इसी उत्साह के साथ अगर छात्रों और शिक्षकों का संयुक्त प्रयास किया जाए तो पुनः भारत अपनी खोई पहचान प्राप्त कर सकता है. समाज और राष्ट्र में सदैव शिक्षकों को सर्वोच्च स्थान और सम्मान मिलता रहे और विभिन्न स्तरों पर शिक्षकों के स्तर में आती गिरावट पर विराम लगे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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