क्यों बनगांव भूल रहा है अपने बबुआ खाँ को - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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30 मई 2021

क्यों बनगांव भूल रहा है अपने बबुआ खाँ को

मधेपुरा: वर्तमान में हो रही चोरी और असुरक्षा बनगांव के इतिहास, संस्कृति और संस्कार पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। साथ ही अपने पूर्वज "बबुआ खाँ" द्वारा तैयार गांव की रूपरेखा पर भी प्रश्नचिन्ह लगवा रही है. शायद यहाँ के लोग अपने गांव के इतिहास को भूल रहे हैं या इन्होंने अभी तक जानने की कोशिश भी नहीं की है. तो ऐसे कुछ लोगों, युवाओं और बच्चों को मैं रोशन वत्स आधुनिक युग का महाग्रंथ कहे जाने वाले गूगल बाबा को पढ़ने की सलाह दूंगा! अब ऐसे में आप मना भी नहीं कर सकते हैं क्योंकि महा ग्रंथ आप सबों के हाथों में (मोबाइल के रूप में) मौजूद है, आप जरूर पढ़ें. 


आपको हमारी उपयुक्त बातों को पढ़कर अगर बुरा लगा हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं. परंतु यह आपकी गलती है कि आपने अपने गांव के इतिहास, रूपरेखा या यूँ कहें तो अपने बाबा (लक्ष्मीनाथ झा) को नहीं पढ़ा तो गूगल बाबा को तो पढ़ना पड़ेगा न! अगर आपसे इतना भी नहीं हो सकता तो मैं रोशन वत्स आपके गांव का तो नहीं पर क्षेत्र का जरूर हूं, संक्षिप्त में बताता हूं बनगांव क्या है. यह 'आपन निगम' अर्थात ' बनगांव' बिहार के सहरसा जिले में अवस्थित है. बनगांव की चर्चा अगर हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करें तो यह गांव एशिया के सबसे बड़े गांव में एक है, जिसे बिहार का हाईटेक गांव भी कहा जाता है है. इस गांव का योगदान समाज के सभी सेवाओं (जैसे :- लोक शासन, समाज सेवा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति इत्यादि) और दुनिया को भूतकाल से ही मिल रहा है.  

बनगांव का इतिहास काफी पुराना है. यूँ कहें तो बुद्ध के समय का है. परसरमा में जन्मे संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं जिनकी कर्मभूमि बनगांव रही है कि जिक्र के बिना बनगांव की कहानी अधूरी रह जाती है. लक्ष्मीनाथ गोसाईं (लक्ष्मीनाथ झा) को आदर से बाबा जी के नाम से संबोधित किया जाता है. जो साधु, योगी, दार्शनिक लोकसेवक, और चमत्कारी शक्तियों के साधक थे, इनकी इस असाधारण कार्यों की वजह से लोग उन्हें भगवान मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि गांव के लोगों पर बाबा की कृपा हमेशा से बनी रहती है. वह गांव की रक्षा भी करते हैं. 


बनगांव कुछ समय पहले आपन निगम भी कहलाता था. यहीं से कुछ दूरी पर महिषी के मंडन मिश्र और कंदाहा के प्रसिद्ध सूर्य मंदिर की वजह से यह क्षेत्र ज्ञान, धर्म, दर्शन का केंद्र रहा है और शायद इसी कारण भगवान बुद्ध भी अपने आप को नहीं रोक पाए और ज्ञान एवं अध्यात्मिक के विस्तार के सिलसिले में यहाँ आए. गांव की खासियत इस बात से भी है कि यहाँ के लोग हिंदू होने के बाद भी अपना उपनाम खाँ लिखते हैं। गांव की विशालता के चलते गांव की कई शादियाँ गांव के ही दो परिवारों में संपन्न हो जाती है. यहां सालों भर भजन - कीर्तन, पर्व- त्योहार के कारण इसे मिथिला का काशी भी कहा जाता है. शायद इसलिए भी यहाँ के लोग बड़े प्यार से बोलते हैं:- हम मिथिला के काशी छी, बनगांववासी छी.  

वर्तमान समय में हो रहे और असामाजिक कृतियों को मध्य नजर रखते हुए अगर हम गांव की सुरक्षा की बात करें तो भूतकाल में यह गांव काफी सुरक्षित था. कई लोगों की भी यही धारणा है कि स्वयं बाबाजी गांव की रक्षा करते हैं. कई वर्ष पहले गांव के ही दूरदर्शी सोच वाले 'बबुआ खाँ' गांव की सड़कों की रूपरेखा गांव के जनसंख्या घनत्व के अनुसार कुछ इस प्रकार तैयार की गई कि कोई चोर अपने पैर (पांव) गांव में रखने से भी डरता था (कुकृत्य करके भागना तो दूर की बात) परंतु वर्तमान में गांव की सुरक्षा व्यवस्था लचर होने के कारण कई प्रकार के कुकृत्य देखने को मिल जाते हैं. उनमें 28/05/2021 वाली घटना आत्मा को चोट पहुंचाने वाली है. 


सुरक्षा के नाम पर गांव में एक पुलिस थाना तो बना दिया गया है. परंतु वह भी कोई काम की नहीं है. समाज को कुकृत्य से बचाने के नाम पर (शिक्षा देने के लिए) गांव में एक महाविद्यालय और 19 प्राथमिक, मध्य और उच्च-माध्यमिक विद्यालय हैं. परंतु वर्तमान में हुई घटनाएँ सभी व्यवस्थाओं को दाग लगा रही है. अतः गांव के युवाओं की मांग है कि यथाशीघ्र कम से कम गांव की आन-बान-शान "बाबा मंदिर परिषद" को सुरक्षा की दृष्टि से किसी अच्छे ट्रस्ट के हाथों सौंप देना चाहिए ताकि "बबुआ खाँ" वाली पुरानी व्यवस्था को वर्तमान युग के अनुसार बेहतरीन किया/अपग्रेड बनाया जा सके. 

(आलेख:- रौशन वत्स) 

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नोट:- डेटा का स्रोत सर्च इंजन गूगल और आलेख की भाषा मौलिक.


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