
मधेपुरा: 3 सितंबर 1845 को भागलपुर जिलांतर्गत अनुमंडल बना मधेपुरा के शुरुआती दौर में प्रशासनिक खंड में सुपौल और सहरसा भी शामिल रहा जो बाद में अलग हुए. 1911 तक मधेपुरा बंगाल का अहम खंड रहा. वर्ष 1845 से पहले से ही मधेपुरा सामाजिक परिवर्तन का केंद्र बन गया था. 1857 के सिपाही विद्रोह ने बाढ़, दुर्भिक्ष, महामारी के बीच यहां के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ मानसिक रूप से गोलबंद किया. 1908 में पटना में बिहार कांग्रेस के प्रांतीय महाधिवेशन में मधेपुरा से रासबिहारी मंडल, 1910 के इलाहाबाद कांग्रेस राष्ट्रीय अधिवेशन में भी छह सदस्यों ने हिस्सेदारी दी. खिलाफत आंदोलन के दौरान राजेंद्र प्रसाद और शौकत अली बंधुओं ने मधेपुरा मस्जिद के पीछे आमसभा कर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने का आह्वान किया. 13 फरवरी 1919 को रौलेट एक्ट के खिलाफ पछगछिया के राम बहादुर सिंह ने गिरफ्तारी दी. कलकत्ता अधिवेशन के बाद 1920 में ही मधेपुरा अनुमंडलीय कांग्रेस का गठन हुआ जिसमें श्याम सुंदर प्रसाद की अहम भूमिका रही. उनकी प्रेरणा से ही तत्कालीन सीरीज इंस्टीचूट के शिक्षक शिव नंदन प्रसाद मंडल ने कांग्रेस से जुड़ स्वतंत्रता संग्राम को नया आयाम दिया. समरस समाज निर्माण में जातीयता और निरक्षरता के खिलाफ आंदोलन जिसमें अहम अध्याय माना जाता है. 1921 में भागलपुर के प्रेमशंकर बोस ने अपनी टीम के साथ मधेपुरा में राष्ट्रीय आंदोलन को दिशा दी जिसके बाद डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, श्री कृष्ण सिंह, दीपनारायण सिंह आदि नेताओं का दौरा हुआ.

असहयोग आंदोलन में छात्र नेता भूपेंद्र नारायण मंडल और प्रताप झा के नेतृत्व में विद्यालय बहिष्कार हुआ. विदेशी वस्त्र बहिष्कार में रजनी बभनगामा के लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यहां कई चरखा केंद्र खोले गए जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी अग्रिम थी. इसने दिखाया था कि स्वतंत्रता आंदोलन में यहां की औरतें भी पीछे नहीं. डॉक्टर श्यामा प्रसाद घोष द्वारा दान की गई और बरैल के गंगा प्रसाद सिंह की पहल पर बनें चितरंजन लाइब्रेरी अंग्रेज विरोधी गतिविधि का केंद्र बना जो बाद में कांग्रेस ऑफिस, शिवनंदन प्रसाद सेवा आश्रम के रूप में अपनी परिभाषा बदलता गया. 5 मई 1930 को राम बहादुर सिंह के नेतृत्व और शिवाधीन सिंह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सुबालाल यादव ने मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया पुलिस के आते ही नमक की पोटली ले भाग गए. पुलिस रामबहादुर सिंह, शिवाधीन सिंह सहित दर्जनों लोगों को गिरफ्तार कर मधेपुरा लाई जहां महताब लाल यादव, शिवनंदन प्रसाद मंडल एवं कमलेश्वरी प्रसाद मंडल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. 1930 तक मधेपुरा अंग्रेज विरोधी आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन गया बिहपुर सत्याग्रह आंदोलन में मधेपुरा की भूमिका इसका ज्वलंत उदाहरण है. बिहपुर कांग्रेस भवन को अंग्रेजों से मुक्त कराते समय डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद पर हुए लाठीचार्ज के दौरान उनके शरीर पर गिर करामा के सिंहेश्वर झा द्वारा बचाना बाद में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर सिंहेश्वर झा की गिरफ्तारी और साइकिल पंप से कान बहरा करने जिसके कारण हुई मौत का जिक्र राजेंद्र प्रसाद अपनी आत्मकथा में भी किया है.

1932 में बैद्यनाथ धर मजूमदार को अनुमंडलीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने के बाद स्तंत्रता संग्राम ने मानों और रफ्तार पकड़ी. इस दौरान कार्तिक प्रसाद सिंह, छेदी झा दिवज्वर, सूर्य नारायण झा, ईश्वरी सिंह, शिवाधीन सिंह नंद किशोर चौधरी, चित्र नारायण, सूबालाल यादव, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल, भूपेंद्र नारायण मंडल, शिवनंदन प्रसाद मंडल, मो. कुदरतुल्लाह काजमी, देवता प्रसाद सिंह आदि के संघर्ष अग्रिम पंक्ति के नाम रहे. बोरिशाल (अब बांग्लादेश) से जिला बदर होकर अनुशीलन समिति के सदस्य मोहित चंद्र अधिकारी ने मधेपुरा क्षेत्र में अपने बहनोई योगेन्द्र नाथ मजूमदार के यहां शरण लिया और क्रांतिकारी संगठन कायम किया. अंग्रेज समर्थक अमरपुर के महंत के घर हमला और हत्या मामले में मोहित चंद्र अधिकारी को कालापनी की सजा मिली उत्तर बिहार के वे काला पानी सजा प्राप्त पहले सेनानी थे. इससे आहत उनकी बहन सुचेता मजूमदार (कृपलानी)ने मधेपुरा का परित्याग कर दिया. इस दौर में मधेपुरा में सियाराम दल का काफीी प्रभाव रहा खासकर गंगा और कोसी के क्षेत्र में 1942 का आंदोलन मधेपुरा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है इस समय विभिन्न कार्यालयों में कांग्रेस का झंडा फहराया गया.

मधेपुरा तथा किसुनगंज थाना कब्जा, बिहारीगंज रेल स्टेशन, डाकघर में तोड़फोड़ इसके प्रमाण रहे. किसुनगंज के बाजा साह पुलिस की गोली से मारे जाने वाले पहले शहीद थे जिन्हें 20 अगस्त को गोली मारी गई. मनहरा के चूल्हाय यादव भी पुलिसिया कार्रवाई में शहीद होने वाले खास नाम रहे. हजारीबाग जेल से भागकर जय प्रकाश नारायण मधेपुरा क्षेत्र में भूमिगत हुए पस्तपार से अच्युत पटवर्धन की बहन विजया पटवर्धन के साथ हाथी पर सवार सरोपट्टी आए और वहां से कार्तिक प्रसाद सिंह के सहयोग से नेपाली क्षेत्र में आजाद दस्ता का प्रशिक्षण शिविर स्थापित किया जिसमें लोहिया जी भी शामिल थे जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर हनुमाननगर जेल में डाल दिया गया. मधेपुरा के नौजवानों ने सियाराम दल के सहयोग से जेल पर हमला कर इन नेताओं को मुक्त कराया. 1947 आते आते देश के अन्य हिस्सों की तरह मधेपुरा में भी आंदोलन उग्र हो चुका था 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी इस संघर्ष का परिणाम रही. आजादी के बाद भारत लगभग आठ दशक का सफर तय कर चुका है. 79 वीं स्वतंत्रता दिवस पर कृतज्ञ समाज द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के अमिट और अमर नायकों के संघर्ष, शहादत, कुर्बानी, त्याग को सलाम.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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