बाबा दीनाभद्री मेले का शुभारंभ, बाबा के संघर्षों को किया याद - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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12 अगस्त 2025

बाबा दीनाभद्री मेले का शुभारंभ, बाबा के संघर्षों को किया याद

शंकरपुर: प्रखंड अंतर्गत खोनहि सोनवर्षा पंचायत के दीनाभद्री चौक पर बाबा दीनाभद्रीनाथ मेला का भव्य शुभारंभ स्थानीय विधायक चंद्रहास चौपाल ने फीता काटकर किया. इस अवसर पर उन्होंने बाबा दीनाभद्रीनाथ से जनमानस के सुख, शांति और समृद्धि की कामना की. उद्घाटन समारोह में बड़ी संख्या में ग्रामीण एवं जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे. विधायक ने मेला आयोजन समिति को नगद सहयोग प्रदान किया और आयोजन की सराहना की. उन्होंने मेला के सहयोग के लिए नगद दान के रूप में दिए. अपने संबोधन में चौपाल ने कहा, बाबा दीनानाथ हमारे दबे-कुचले, वंचित, शोषित, दलित और गरीब समाज की उस दौर में आवाज थे, जब इस समाज को प्रताड़ित और कुचला जाता था. उस कठिन समय में बाबा ने इस समाज की प्रतिष्ठा को बचाने और उसकी रक्षा के लिए संघर्ष का रास्ता चुना, राजा महाराजा और अफसरशाही के अन्याय एवं अत्याचार के खिलाफ बाबा दीनाभद्री ने पूरी ताकत से लड़ाई लड़ी. 
दलित, शोषित, पीड़ित और हरिजन समाज को उनका अधिकार दिलाने के लिए वे निरंतर संघर्षरत रहे. बाबा पर मां भाग्यश्री की असीम कृपा रही, जिसके चलते आज हम सभी उनके भजन, कीर्तन और भक्ति में शामिल हो पा रहे हैं, उन्होंने मेला आयोजन में योगदान देने वाले मेला अध्यक्ष परमानंद ऋषिदेव, राजेंद्र ऋषिदेव, दिनेश ऋषिदेव, मेला मालिक सदानंद ऋषिदेव, सुरेन ऋषिदेव, प्रभाष साह, कुंदन ऋषिदेव, रमेश ऋषिदेव, नरेश यादव, कृत्नरायण ऋषिदेव, आशीष यादव, अजय साह, विनोद यादव, संतोष बाबू समेत तमाम ग्रामीणों का आभार जताया. विधायक ने कहा कि पहले पुल न होने से क्षेत्रवासियों को भारी परेशानी होती थी, लेकिन सरकार से लगातार पहल के बाद कई पुलों का निर्माण कराया गया है. लालपुर के लोहे के पुल को पक्की पुल बनाने की स्वीकृति भी दो बार मिल चुकी है और जल्द ही उसका शिलान्यास किया जाएगा, अंत में उन्होंने मंदिर के पुजारी रामचंद्र बाबा को नमन करते हुए लालपुर, सोनवर्षा और प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांवों से आए श्रद्धालुओं का अभिनंदन एवं स्वागत किया. 
मेला का इतिहास एवं महत्व

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, बाबा दीनाभद्रीनाथ का यह मेला वर्षों पुराना है और सावन-भादो के पावन अवसर पर आयोजित किया जाता है. यह धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु, व्यापारी और कलाकार जुटते हैं. पूजा-अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रम और पारंपरिक झूले मेला का मुख्य आकर्षण होते हैं?

(रिपोर्ट:- प्रिंस कुमार प्रभाकर)

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