मधेपुरा: रविवार को जिला मुख्यालय के वेद व्यास महाविद्यालय परिसर में सृजन दर्पण के सहयोग से नृत्यालय संस्थान द्वारा सात दिवसीय नृत्य और नाट्य कार्यशाला संपन्न हो गया. बड़ी संख्या में प्रतिभागी छात्र-छात्राओं ने भाग लिएं नृत्य एवं नाटक का हुनर सीख. एक तरफ जहां अभिनय के गुर सीखे वहीं दूसरी ओर रंगमंच की बारीकियों को करीब से समझा. प्रतिभागी बच्चों ने नाटक विधा के विभिन्न पहलुओं को जानने का प्रयास किया, जिसमें नाटक कला के गूढ़ रहस्य सीखे. कला जीवन में व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. संगीत, नृत्य और नाटक ऐसी विधा हैं जिनमें संवेदन शील मानव रुचि रखते हैं. ये बातें कार्यशाला के समापन के अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए संस्थान के निर्देशिका कुमकुम कुमारी ने कही. उन्होंने कहा कि कला कलाकार को जीवन जीने कि शालिका सीखाती है. संयोजक इंजिनियर विक्रम कुमार ने बताया कि नृत्यालय द्वारा पहले भी कई बार निशुल्क लोक नृत्य एवं नाटक कार्यशाला का आयोजन ख्याति प्राप्त रंगकर्मी विकास कुमार के मार्गदर्शन और निर्देशन में विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी विद्यालयों में आयोजित किया गया है. मूख्य प्रशिक्षक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से सम्मानित और दूरदर्शन केन्द्र पटना से ग्रेड प्राप्त कलाकार और रंग निर्देशक विकास कुमार ने बच्चों को 25 वर्ष के कला यात्रा से रु -ब-रु कराते हुए अभिनय करवाया. नृत्य और नाटक का महत्व बताया और नृत्य के विभिन्न अभ्यास करवाए. उन्होंने कहा कि नृत्य में पद संचालन का विशेष महत्व है. संगीत की लय और ताल के अनुरूप पद संचालन और शरीर की भाव भंगिमा होनी चाहिए. कार्यशाला आयोजित करने का उद्देश्य यही था कि नई पीढ़ी के प्रतिभाओं को अपने लोक-संस्कृति, नृत्य और नाटक से जोड़ना है. तथा कलाओं के माध्यम से मानव में संवेदनशीलता को सुदृढ़ करना है. उन्होंने यह भी कहा कि कार्यशाला में शामिल सभी प्रतिभागियों के लगन और मेहनत की सराहना किये. बिकास ने अपनी माटी के विलुप्त हो रही लोक संस्कृति से जरूरे कई लोग गीत एवं लोकनृत्य के बारे में जानकारी देते हुए भरत मुनि के रचित नाट्य शास्त्र के बारे में विस्तार से प्रतिभागी बच्चों को बताया. कार्यशाला में शामिल मौसम कुमारी ने कहा कि आत्मविश्वास जागृत हुआ है. अंदर की हेजिटेशन खत्म हो गई है. मै आगे भी रंगमंच से जुड़ी रहूंगी.
जबकि सोहानी कुमारी और स्नेहा कुमारी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि पहले तो हमें कला और संस्कृति, विशेष रूप से रंगमंच का तो बिल्कुल ही ज्ञान नहीं था. इस कार्यशाला में आने के बाद जाना कि इस विधा की भी पढ़ाई भी होती है. प्रतिभागी शिवम् कुमार और आर्यन कुमार एक बेहतर कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते है.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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